पुंज प्रकाश
वर्तमान में ओड़िशी नृत्यांगना बेटी किरण सहगल के साथ दिल्ली में रहने वाली जोहरा सहगल रंगकर्मियों में जोहरा आपा के नाम से प्रसिद्ध हैं । शायद ही कोई ऐसा शख्स हो जो उनसे मिला हो या उन्हें कहीं सुना हो और उनकी हाज़िर जबाबी, जिंदादिली और हास्य बोध का कायल ना हुआ हो | जिंदादिल जोहरा सहगल 27 अप्रैल 2012 को 100 साल की हो गईं। सौ साल की जिंदगी अपने-आप में एक उपलब्घि है उसपर लगभग आठ दशक की क्रिएटिव लाइफ तो वैसा ही है जैसे सोने पे सुहागा | इस मौके पर उनकी बेटी किरण सहगल अपनी मां को एक विशेष उपहार देने की तैयारी में हैं। किरण ने अपनी मां के जीवन पर एक किताब लिखी है “जोहरा सहगल फैटी”। इस किताब में किरण ने एक सख्त मिजाज और अपने वजन को लेकर हमेशा चिंतित रहने वाली मां यानि जोहरा सहगल के बारे में बताया है।
वर्तमान में ओड़िशी नृत्यांगना बेटी किरण सहगल के साथ दिल्ली में रहने वाली जोहरा सहगल रंगकर्मियों में जोहरा आपा के नाम से प्रसिद्ध हैं । शायद ही कोई ऐसा शख्स हो जो उनसे मिला हो या उन्हें कहीं सुना हो और उनकी हाज़िर जबाबी, जिंदादिली और हास्य बोध का कायल ना हुआ हो | जिंदादिल जोहरा सहगल 27 अप्रैल 2012 को 100 साल की हो गईं। सौ साल की जिंदगी अपने-आप में एक उपलब्घि है उसपर लगभग आठ दशक की क्रिएटिव लाइफ तो वैसा ही है जैसे सोने पे सुहागा | इस मौके पर उनकी बेटी किरण सहगल अपनी मां को एक विशेष उपहार देने की तैयारी में हैं। किरण ने अपनी मां के जीवन पर एक किताब लिखी है “जोहरा सहगल फैटी”। इस किताब में किरण ने एक सख्त मिजाज और अपने वजन को लेकर हमेशा चिंतित रहने वाली मां यानि जोहरा सहगल के बारे में बताया है।
भारतीय सिनेमा से एक साल बड़ी जोहरा सहगल उन बहुत ही कम मेहनती कलाकारों में से एक हैं जिन्हें अपने आप पर भी हँसाना और दूसरों को भी हँसाना बखूबी आता है| कुछ दिनों पहले 67 वर्षीय किरण सहगल ने अपनी मां को उनकी जीवनी का कवर पेज दिखाया, जिस पर लिखा था “जोहरा सहगल फैटी”। दरअसल किरण इस शीर्षक पर अपनी मां की प्रतिक्रिया जानना चाहती थीं। यह देखते ही जोहरा ने तपाक से कहा, तुमने प्रकाशक से “फैटी” के साथ “हिटलर” लिखने को क्यों नहीं कहा। इतना कहकर वह खिलखिला पड़ीं।
किरन सहगल उनकी सौवीं सालगिरह के मौके पर कहतीं हैं – “एक बेटी के लिए इससे बड़ी खुशी की बात क्या हो सकती है कि उसके पूरे परिवार को स्नेह देने के लिए उसकी सौ साल की मां साथ हैं। पूरा परिवार उनके सौंवी सालगिरह मनाने की तैयारी में जुटा है। हालाँकि माँ अब बधाई देनेवालों को कहतीं है कि अब मुझे कोई लंबी उम्र कि दुआ मत दो | लेकिन मैं ईश्वर से कमाना करती हूँ कि हमें आगे भी उनका सानिग्ध मिलता रहे | उनके अंदर अभी भी जिंदगी को लेकर गज़ब का उत्साह है | उनकी सकारात्मक सोच का ही आसर है कि वो इतने लंबे समय तक उर्जा से लबरेज हैं | उम्र के लिहाज से उनकी सेहत आज भी ठीक है | वे हमारे साथ हर तरह के खाने का स्वाद लेना पसंद करतीं हैं |
मेरी मन मजबूत इरादे वाली महिला है जिसकी बदौलत ही उन्होने ९१ साल कि उम्र में कैंसर जैसी बीमारी को मात दिया | बढाती उम्र से आई शारीरिक कमजोरी ने भले ही माँ का चलना फिरना कम हो गया है लेकिन उनकी चेतना अभी भी किसी नौजवान जैसी है | वो अपने वजन के प्रति आज भी सचेत रहतीं हैं |"
जोहरा सहगल एक संक्षिप्त परिचय : उनका जन्म 27 अप्रैल 1912 को उत्तर प्रदेश में सहारनपुर के रोहिल्ला पठान परिवार में हुआ। वे मुमताजुल्ला खान और नातीक बेगम की सात में से तीसरी संतान हैं। हालांकि जोहरा सहगल का लालन-पालन सुन्नी मुस्लिम परंपराओं के अनुसार हुआ, जिसमें पांच बार नमाज पढ़ना और रोजे रखना अनिवार्य माना जाता था, लेकिन वे शुरूआत से ही विद्रोही किस्म की रहीं। बचपन में पेड़ों पर चढ़ने और तरह-तरह के खेल खेलने में उनकी दिलचस्पी थी।
लाहौर से स्कूली शिक्षा और स्नातक करने के बाद जोहरा अपने मामा के साथ जर्मनी चली गई। वहां उन्होंने खुद को बुर्के से आजाद कर लिया और संगीत की शिक्षा ली। वहाँ उन्होंने नृत्य की आरंभिक शिक्षा प्राप्त की| वर्ष 1935 में जोहरा जाने-माने नर्तक उदय शंकर से मिलीं और उनके डांस ग्रुप का हिस्सा बनकर पूरी दुनिया घूमीं है। उदय शंकर के साथ जापान, मिस्र, यूरोप और अमेरिका सहित कई देशों में अपने डांस कार्यक्रम पेश किए। वह काफी दिनों तक ब्रिटेन में रहीं और अंग्रेजी फिल्मों में भी काम किया।
1940 में अल्मोड़ा स्थित शंकर के स्कूल में नृत्य की शिक्षा देने के साथ ही उनकी मुलाकात कामेश्वर से हुई, जिनसे जोहरा ने 1942 में शादी की। जोहरा सहगल के पति कामेश्वर सहगल, एक वैज्ञानिक होने के साथ-साथ चित्रकार और नृत्यकार भी थे। फिर उन्होंने मुंबई आकर पृथ्वी थियेटर में नृत्य निर्देशक के रूप में काम करना शुरू किया, जहां वह अपनी सख्त मिजाजी के लिए जानी जाती थीं। यहीं से उनका फिल्मों का सफर भी शुरू हो गया। 1945 में जोहरा सहगल भी पृथ्वी थियेटर में 400 रूपए के मासिक वेतन पर अभिनेत्री के रूप में काम करने लगीं। वे पृथ्वी थियेटर में 14 साल तक रहीं और इस दौरान उन्होंने नाट्य ग्रुप्स के साथ भारत के कोने-कोने का दौरा किया। जोहरा सहगल इप्टा में शामिल हो गई। कई नाटकों के साथ ही फिल्मों में भी उन्होंने काम किया। 1946 में ख्वाजा अहमद अब्बास के निर्देशन में इप्टा के पहले फिल्म प्रोडक्शन "धरती के लाल" और फिर इप्टा के सहयोग से मक्सिम गोर्की की कहानी पर आधारित चेतन आनंद की फिल्म "नीचा नगर" में उन्होंने काम किया। "धरती के लाल" भारत की पहली फिल्म थी, जिसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलने के साथ कान फिल्म समारोह में “गोल्डन पाम पुरस्कार” मिला। इस दौरान हालांकि उन्होंने कुछ और फिल्मों में काम किया लेकिन उनकी प्राथमिकता रंगमंच ही रही। उन्होंने अल्काजी के प्रसिद्ध नाटक "दिन के अंधेरे" में बेगम कुदसिया की भूमिका निभाई। इसके अलावा उन्होंने ख्वाजा अहमद अब्बास, चेतन आनन्द और देवानन्द की फिल्मों और नाटकों में भी काम किया। जोहरा सहगल ने गुरूदत्त की बाजी (1951) समेत कुछ हिन्दी फिल्मों के लिए नृत्य संयोजन कोरियोग्राफी भी की। राजकपूर की फिल्म "आवारा" का प्रसिद्ध "स्वप्न गीत" का नृत्य संयोजन भी उन्होंने ही किया था। प्रख्यात निर्देशक चेतन आनंद की “नीचा नगर” में भी अहम भूमिका में वे थीं। बीच में दशकों के अन्तराल के बाद जोहरा सहगल अंग्रेजी धारावाहिकों और फिल्मों, खासकर एनआरआई फिल्मों से एक बार फिर सक्रिय हुईं।1959 में अपने पति के निधन के बाद जोहरा सहगल दिल्ली आ गई और नवस्थापित नाट्य अकादमी की निदेशक बन गई। तन्दूरी नाइट्स को उनका श्रेष्ठ टीवी धारावाहिक माना जाता है और उल्लेखनीय फिल्मों में भाजी ऑन द बीच, दिल से, ख्वाहिश, हम दिल दे चुके सनम, बेण्ड इट लाइक बेकहम, साया, वीर-जारा, चिकन टिक्का मसाला, मिस्ट्रेस ऑफ स्पाइसेज, चीनी कम, साँवरिया शामिल हैं। जोहरा सहगल का हमारे बीच होना कला-अनुरागी समय की, खासकर जो इस समय का संजीदा हिस्सा हैं, एक बड़ी सुखद अनुभूति है। उन्होंने हाल ही में बॉलीवुड की सुपरहिट फिल्म हम दिल दे चुके सनम, कभी खुशी कभी कम, चीनी कम जैसी कई फिल्मों में काम किया।1964 में बीबीसी पर रुडयार्ड किपलिंग की कहानी में काम करने के साथ ही 1976-77 में बीबीसी की टेलीविजन श्रृंखला पड़ोसी नेबर्स की 26 कड़ियों में प्रस्तोता की भूमिका निभाई।
पुरस्कार - 1963 संगीत नाटक अकादमी, 1998: पद्मश्री, 2001: कालिदास सम्मान, 2002: पद्म भूषण, 2004: संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप, 2010: पद्म विभूषण |
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